परम पावन चौदहवें दलाई लामा जी को नोबेल शान्ति पुरस्कार सेसम्मानित हुये 32वीं वर्षगाँठ के उपलक्ष्य में निर्वासित तिब्बती संसद कावक्तव्य।
देव सहित संसार व निर्वाण का चुडामणि, तीनों लोक के धर्मराज, विश्वशान्ति के नेतृत्व, इस धरती पर सभी बुद्ध शासन के शासक, हिमवत तिब्बत के देव संयोग, बोधिसत्त्व लोकनाथ मनुष्य की भूमिका निभाते हुए, समस्त तिब्बतियों के नाथ सर्वोच्च आध्यात्मिक गुरु परम पावन चौदहवें दलाई लामा जी को आज विश्व में अति प्रतिष्ठित नोबेल शान्ति पुरस्कार को प्रदान किये पूरे 32 वर्ष हो गया है। इस विशेष सुवसर पर तिब्बत व तिब्बत से बाहर रहने वाले तिब्बतियों की ओर से श्रद्धा व हर्षोल्लास के साथ आपके अनुकम्पा को स्मरण करते हुये अभार सहित टाशि देलेक व्यक्त करता है।
नोबेल पुरस्कार समिति द्वारा तिब्बत के सर्वोच्च धार्मिक नेता परम पावन चौदहवें दलाई लामा जी को आज ही के दिन 10 दिसम्बर, 1989 को सुप्रसिद्ध नोबेल शान्ति पुरस्कार से सम्मानित किये 32 वर्ष पूर्ण हो गया है और इस दिन को दुनिया भर में मानवाधिकार दिवस के रूप में भी मनाया जाता है, इस कारण निश्चित रूप से समस्त तिब्बतियों की ओर से गौरवपूर्ण दिन के रूप में स्मरण करना चाहिये। वर्ष 1989 को नोबेल पुरस्कार समिति द्वारा परम पावन दलाई लामा जी को तिब्बत की सत्य के संघर्ष जो कि अहिंसक, सहनशीलता, पारस्परिक हित वाले मुख्य रूप से मध्यम मार्ग को अपनाना, अन्तर्राष्ट्रीय में मानवधिकार तथा पर्यावरण आदि मुद्दे की ओर ध्यान खिंचना, जितनी भी समस्या है सभी का वार्ता के माध्यम से दूर करने की प्रयास करना व मानव मात्र ही नहीं बल्कि इस धरती के समस्त प्राणियों के प्रति हिंसा त्यागने की सर्वभौमिक उत्तरदायित्व सिद्धान्त के रूप में मार्ग प्रशस्त किये जाने का अनुमोदित करते हुए प्रशंसा के साथ विश्व के सुप्रतिष्ठित नोबेल शान्ति पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। हर वर्ष परम पावन जी के सम्मान व कार्य का उत्तरोत्तर वृद्धी होने कारण विश्व के पश्चिमी-पूर्वी देशों व बहुत से संगठनों ने सम्मान पुरस्कार तथा सौ से अधिक प्रमामपत्र प्रदान करने कारण आपको विश्व में अत्यधिक सम्मानित किये जाने वाले एक महान अधिनायक के रूप में मान्यता दी हैं।
परम पावन जी ने नोबेल शान्ति पुरस्कार प्राप्त करते समय का कथन “आप लोगों ने तिब्बत के एक साधारण भिक्षु को यह महत्त्वपूर्ण पुरस्कार से सम्मानित किया है, उससे मैं आपने आपको गौरवान्वित अनुभव कर रहा हूँ, और भावनात्मक रूप से मन की गहरायों को छु गया। लेकिन मेरा मानना है कि यह पुरस्कार परोपकारिता, मैत्री, करुणा और अहिंसा के सच्चे मूल्यों की मान्यता है, जिसे कि मैं बुद्ध और भारत-तिब्बत के महान सन्तों की शिक्षा के सार को को जितनी हो सके अभ्यास करने का प्रयास करता हूँ। मैं हर जगह उत्पीड़ितों की ओर से और उन सभी के लिये जो स्वतन्त्रता के लिये संघर्ष करते हैं और विश्व शान्ति के लिये काम करते हैं, उनके लिये अत्यन्त आभार के साथ पुरस्कार स्वीकार करता हूँ। मैं इसे उस महान व्यक्ति को श्रद्धाञ्जलि के रूप में स्वीकार करता हूँ जिसने परिवर्तन के लिये अहिंसक कार्रवाई की आधुनिक परम्परा की स्थापना की – महात्मा गाँधी- जिनके जीवन ने मुझे सिखाया और प्रेरित किया। और, विशेष रूप से, मैं इसे तिब्बत के भीतर अत्यधिक पीड़ा सह चुके व सहने
वालों साहसी वीर, तिब्बत के साठ लाख जनताओं के प्रतिनिधि के रूप में पुरस्कार स्वीकार करता हूँ।” इस प्रतिष्ठित पुरस्कार से सम्मानित किये जाने के परिणामस्वरूप, विश्व के पूर्व-पश्चिम के कुछ जगह से तिब्बत के मुद्दे पर समर्थन व रुचि दिखाने वाले लोगों की संख्या में भारी वृद्धि हुई है, तिब्बत के संघर्ष दुनिया भर में जागरूकता भरे वातावरण के दायरे में फैला है, इतना ही नहीं, इससे तिब्बती बौद्ध धर्म, संस्कृति और आध्यात्मिक परम्परा के लाभ दुनिया के कोने कोने में फैल सका है।
वर्ष 2021 नोबेल शान्ति पुरस्कार दो पत्रकारों – फिलिपींस की सुश्री मारिया रसा और रूसी संघ के श्री दिमित्री आंद्रेयेविच मुराटोव को प्रदान किया गया है। और इस पुरस्कार की अपनी आधिकारिक घोषणा में, नोबेल शान्ति पुरस्कार समिति ने कहा है कि यह पुरस्कार मारिया रेसा और दिमित्री मुराटोव को संयुक्त रूप से “अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता की रक्षा करने के उनके प्रयासों के लिये दिया गया था, जो लोकतन्त्र और शान्ति को प्रेरित करने के लिये एक पूर्व शर्त है।” तिब्बत व तिब्बत से बाहर रहने वोले लोगों व निर्वासित तिब्बती संसद की ओर इन दोनों व्यक्तियों के उत्कृष्ट योगदान के लिये अनुमोदन व प्रंशसा अभिनन्दन स्वरूप टाशि देलेक प्रस्तुत करते हैं।
परम पावन दलाई लामा जी ने बौद्धों के सिद्धान्त व आधारभूत व्यावहारिक ज्ञान की समझ से सभी सत्त्वों की भलाई सुनिश्चित करने में मदद करने की विशाल चुनौती में स्वयं को व्यस्त रखा है। विशेष रूप से, उन्होंने बड़ी बड़ी कठिनाई सही और कठिनाईयों से निडर होकर, हिम देश तिब्बत के सभी संवेदनशील प्राणियों की भलाई के लिये बड़ी करुणा, स्नेह प्रदान किया है। इसे ध्यान में रखते हुये और तिब्बत के लोगों को स्वतन्त्रता, समानता और निष्पक्षता के आधार पर पूर्ण स्वतन्त्रता का एहसास हो सके, परम पावन जी ने उन्हें लोकतन्त्र का उपहार प्रदान कर एक महत्वपूर्ण राजनीतिक निर्णय लिया। अब तक 61 वर्षों से अधिक हो गया है तिब्बत के लोग लोकतान्त्रिक मार्ग पर आगे बढ़ने में सक्षम हुई है। और यह सब परम पावन जी के ही नेतृत्व व अनुकम्पा से हो पाया है, हम सदैव उनके ऋणी हैं।
लोकतन्त्र में विचारों के आधार पर मतभेद पैदा होते है, जिससे सभी प्रकार के विवाद होते है। यह सभी लोकतान्त्रिक देशों में एक सामान है, चाहे पूर्व में हो या पश्चिम में। जब भी केन्द्रीय तिब्बती प्रशासन में ज़िम्मेदार पदों पर बैठे लोगों के विचारों में और व्यापक जनता के विचारों में मतभेद उत्पन्न होते हैं, तो इन विचारों को परम पावन जी के कुशल नेतृत्व और मार्गदर्शन के तहत व्यापक सार्वजनिक चर्चा व परिक्षण के माध्यम से सुलझाया जाना चाहिये। ऐसा दृष्टिकोण परम पावन दलाई लामा जी के इच्छानुरूप होगा और अधिकार से बड़कर कर्तव्य को महत्व देना, व्यक्ति से बड़कर क़ानून को महत्व देना तो वास्तविक लोकतान्त्रिक मार्ग की ओर कदम बढ़ाना तो परम पावन दलाई लामा जी की के विचार है, एक नायाब लोकतान्त्रिक प्रणाली बन गया है यही नहीं तिब्बतियों के मौलिक कारणों के लिये संघर्ष के दृष्टिकोण से भी गम्भीर रूप से महत्वपूर्ण है। इसलिये हम विशेषरूप से सभी सम्बन्धित लोगों से अपने दिमाग में इसे दृढ़ता से रखने के अतिरिक्त सतर्क रहने का आह्वान करते हैं।
सत्त्वों के वास्ते अपने जीवन भर की गतिविधियों को ध्यान में रखते हुये, परम पावन चौदहवें दलाई लामा जी ने अपने जीवन की चार प्रमुख प्रतिबद्धताओ को सूचीबद्ध किया है। उनकी पहला प्रमुख प्रतिबद्धा एक मनुष्य के रूप में धर्मनिरपेक्ष नैतिकता या सार्वभौमिक मूल्यों को बढ़ाने का उनका प्रयास है। परम पावन जी कहते हैं कि किसी व्यक्ति के आचरण में धर्मनिरपेक्ष नैतिकता का पालन करना सभी की खुशी सुनिश्चित करने का आधार है –सम्बन्धित व्यक्तिगत, उसका परिवार और उसका सामज है। दूसरा, बौद्ध होने के नाते, वह दुनिया की विभिन्न धार्मिक परम्पराओं के बीच सद्भाव को प्रोत्साहित करने के लिये प्रतिबद्ध है। उनका कहना है कि उनकी विचारधाराओं और सिद्धान्तों में अन्तर के बावज़ूद, दुनिया के सभी धर्म करुणा, प्रेम, सहिष्णुता, सन्तोष और नैतिक आचरण के अपने शिक्षण में समान है। इस तरह, वे अपने अनुयायों को सुखमय जीवन की ओर ले जाने की क्षमता भी समान है। तीसरा, एक तिब्बती होना, दलाई लामा की हैसियत वाले व्यक्ति के रूप में, विशेषकर तिब्बत व तिब्बत से बाहर रहने वाले समस्त जानताओं की आशाओं और विश्वास होने के कारण मैं तिब्बत के मुद्दे, चीनी वातावरण के अधीनता में रहने वाले तिब्बतियों के स्वतन्त्रता के प्रतिनिध्व करता रहूँगा। चौथा, प्राचीन भारतीय आध्यात्मिक परम्पराओं के अनुयायी होने के नाते परम पावन ने आधुनिक शिक्षा प्रणाली के साथ संयोजन करके मनोविज्ञान, तर्कशास्त्र, दार्शनिक धारणाओं पर आधारित ध्यान प्रथाओं और धर्मनिरपेक्ष नैतिकता के क्षेत्र में प्राचीन भारतीय ज्ञान को पुनर्जीवित करने के लिये स्वयं को समर्पित किया है। इसका लक्ष्य एक वैश्विक मानव समाज में करुणा-मैत्रीपूर्ण विकसित करने का प्रयास करना है।
परम पावन दलाई लामा जी के उन प्रतिबद्धताओं को सभी तिब्बतियों, विशेषकर निर्वासन में रहने वाले तिब्बतियों द्वारा अपने अपने व्यक्तिगत रूप से जो भी कर सकते हैं, दूसरे लोगों व अन्य समाज में प्रभाव डाल सके ऐसी पूरी कोशिश होनी चाहिये। परम पावन जी के ही विशेष अनुयायी होने के कारण बिना अवरोध के उत्तरदायित्व बनता है। एक एक व्यक्ति को इन उत्कृष्ट विचारों का अध्ययन करना, व्यावहारिक रूप से लागू और इसका प्रचार-प्रसार करना चाहये। जिससे संसार में सामान्य तौर से तथा एक एक व्यक्तिगत रूप से कहा जाय तो भी इह लोक व परलोक दोनों में अत्यधिक महत्वपूर्ण बन जाता है।
आज विश्व मानवाधिकार दिवस भी है, हालांकि, तिब्बत पर आक्रमण करने और बलात् कब्जा किये जाने के लेकर चीन द्वारा तिब्बतियों के दुःखों से बाहर निकाले जाने की (शान्तिपूर्वक मुक्त) 70 वीँ वर्षगाँठ मनाई है। इससे सम्बन्ध एक तथाकथित श्वेत पत्र प्रकाशित किया है, जो असत्य झूठ के पुलिंदा बन्धते हुये ऐतिहासिक तथ्यों को तोड़ मोरोड़ कर पेश करने के अलावा और कुछ नहीं था। वर्ष 2022 के शीतकालीन ओलम्पिक खेलों का आयोजन चीन की राधानी शहर बीजिंग में होना है, साम्यवादी चीन को यह सम्मान देना न तो न्याय संगत है न ही नैतिक रूप से उचित है। निर्वासित तिब्बत संसद इस आयोजन को कदापि स्वीकर नहीं कर सकता। साथ ही हमारा यह भी मानना है कि अब समय आ गया है कि अन्तर्राष्ट्रीय समुदाय के द्वारा भी इसका बहिष्कार करेंगे ऐसा हम समझते हैं।
चीन सरकार द्वारा तिब्बत के भीतर तिब्बतियों को यातना व अथाह अत्याचार किया जा रहा है, इसी तरह, पूर्वी तुर्किस्तान (शिनजियांग), दक्षिण मंगोलिया (आन्तरिक मंगोलिया) और हांगकांग के लोगों के मौलिक मानवाधिकारों का बिल्कुल भी सम्मान नहीं किया जा रहा है, विशेषकर, तिब्बत के तीनों प्रान्तों में लोगों पर अत्यधिक कड़े प्रतिबन्ध लगाये हैं। इसके तहत, राजनीतिक बन्दियों को अथाह दुर्व्यवहार और यातना का सामना करना पड़ रहा है। धार्मिक पूजा और अध्ययन के कई स्थानों को नष्ट कर दिया गया है। पूरे तिब्बत में मठों व समुदायों दोनों में, लोगों के घरों में साम्यवादी चीनी के शीर्ष नेताओं के चित्र प्रदर्शित करने के लिये मजबूर किया जा रहा है। और तिब्बत के सांस्कृतिक और धार्मिक परम्पराओं को मिटाने के उद्देश्य से उन्हे नियमित रूप से नाना प्रकार के चीनी शिक्षा का विस्तार किये जाने के कारण तिब्बत के धर्म-संसकृति को नष्ट किया जा रहा है। इस तरह, तिब्बत के सभी प्रमुख क्षेत्रों में, हमेशा के लिये अधिक-से-अधिक चीनियों को स्थानान्तरित करने के लिये प्रोत्साहित किया जा रहा है। जिससे तिब्बतियों को अपने ही मातृभूमि में अल्पसंख्यक बनाया जा रहा है। जिससे तिब्बतियों की पहचान मिटाकर चीनि में परिवर्तित करने की जघन्य नीति के कार्यान्वयन को तत्काल बन्द करने की आग्रह करते हैं।
केन्द्रीय तिब्बती प्रशासन व जनता दोनों ही पारस्परिक रूप से लाभप्रद मध्यम मार्ग नीति के प्रति अपनी प्रतिबद्धता में अडिग हैं जो परम पावन चौदहवें दलाई लामा जी की तिब्बत-चीन दोनों का लाभ मध्यम मार्ग सिद्धान्त के माध्यम से ही हो सकता है, दोनों की भविष्य की सम्भावनाओं के देखते हुये अहिंसक मार्ग पर कटीबद्ध है। तिब्बत के मद्दे के समाधान की विश्वास, उनके योजनाओं के अनुसार आग्रसर हैं। चीन सरकार द्वारा हाल ही में परम पावन जी के साथ व्यक्तिगत स्थिति से सम्बन्धित मामलों पर चर्चा करने के अलावा तिब्बत से सम्बन्धित कुछ भी कहने से नकारता रहा है। चीन सरकार के नेताओं को तिब्बत के मुद्दे को हल करने की इच्छा व दृढ़ संकल्प का न होना स्पष्ट दिख रहा है। फिर भी, परम पावन जी के प्रतिबद्ध कार्यों और तिब्बति में रह रहे तिब्बतियों के उत्साह और लगाव आदि को देखते हुये तिब्बत के मुद्दे पर जागरूकता व रुचि रखने वालों की संख्या में वृद्धि हो रही है इसके मध्य नज़र निर्वासन में तिब्बतियों द्वारा अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर तिब्बत के मद्दे का परिचय, तिब्बत स्वतन्त्रता हो इसके लिये आन्दोलन करना, तिब्बत लोगों के संघर्ष के लिये अधिक-से-अधिक अन्तर्राष्ट्रीय समर्थन जुटना, निर्वासन में केन्द्र तिब्बती प्रशासन के नीव को मज़बूत कर तिब्बत के धार्मिक, सांस्कृतिक विरासत और उसकी जातीय पहचान लुप्त न हो इसका हमें हर सम्भव प्रयास की ओर अग्रसर रहना चाहिये।
17वीं निर्वासित तिब्बती संसद शपथ ग्रहण के बाद से सभी संसदों को भारत के विभिन्न प्रदेशों में बसे तिब्बती बन्दोबस्त (स्ट्टेलमेन्ट) में शीघ्र ही विभिन्न तिब्बती बस्तियों और समुदायों का दौरा करेंगे। उसके बाद, उनके निरीक्षण दौरो के लिये बन्दोबस्तों और समुदायों के आवंटन के साथ समूहों में विभाजित किया जायेगा। तदनुसार सम्बन्धित बन्दोबस्त के जनताओं को आग्रह किया जाता है कि वे हमारे दौरे के कार्यक्रमों में सहयोग करने में अधिक-से-अधिक भाग लें। इसी तरह, यह महत्वपूर्ण है कि स्थानीय अध्यक्ष के साथ स्थानीय निकाय द्वारा चुने गये सदस्यों को अपनी कामों से सम्बन्धित जानकारी देनी होगी। निर्वासित तिब्बती संसद की ओर से बहुत से बन्दोबस्तों में कार्यशालाओं का आयोजन करने की योजना बना रही है। हम इन बन्दोबस्तों और समुदायों के सभी निर्वाचित नेताओं व अधिकारियों से उत्साहपूर्वक भाग लेने की अपील करते हैं।
अन्ततः में परम पावन दलाई लामा जी के साथ तिब्बतियों के सभी सम्प्रदायों के धार्मिक व आध्यात्मिक अवतारी पुरुषों की दीर्घायु हो, तथा उनकी महान इच्छाओं को सहजता के साथ पूर्ण होते देखा जा सके, तिब्बत के मुद्दे को सुलझा हुआ देखा जा सके और निश्चित रूप से हम सब एक साथ तिब्बत में एकत्रित हो सके ऐसा सौभाग्य व सुअवसर शीघ्रातिशीघ्र प्राप्त हो इन्हीं बहुत सारे प्रार्थनाओं सहित तिब्बती पंचंक अनुसार रबने लोह-वृषभ वर्ष, दिनांक 10 दिसम्बर, 2021 को।
* इस हिन्दी अनुवाद में किसी भी प्रकार के विसंगति के मामले में, सभी प्रयोजन हेतु तिब्बतीमूल को आधिकारिक और अन्तिम माना जाना चाहिये।