आज तिब्बती पञ्चाङ्गानुसार सत्रह सेक्साजेनरी चक्र (रब्जुङ 17) (साठ साठ के हिसाब से चलने वाला चक्र तिब्बती में क्रमशः एक रब्जुङ से शुरु हुआ था) जल-व्याघ्र वर्ष 2149 पाँचवा मास के सातवे तिथि तदानुसार 06 जुलाई, 2022 के दिन समस्त धरती पर बुद्ध के शिक्षाओं का प्रबुद्ध, हिमवत् तिब्बत देश के संरक्षक देव, आर्यावलोकितेश्वर के अवतार, तीनों लोकों के धर्मराज, जगत के शान्तिदूत, समस्त तिब्बतियों के सर्वोच्च आध्यात्मिक नेता व बुद्धिमत्ता पथप्रदर्शक परम पावन चौदहवें दलाई लामा जी को मैं इस जन्म दिन के अवसर पर सर्वप्रथम साष्टांग प्रणाम करते हुए आनन्द, श्रद्धा व प्रसन्नचित्त होकर अभिनन्दन व टाशि देलेक व्यक्त करता हूँ।
समस्त प्राणियों व विशेषकर हिमवत तिब्बत देश के अनुयायियों के कर्मों व प्रार्थना के अनुरूप इस संसार में तिब्बती पञ्चाङ्गानुसार काष्ठ-वाराह (शूकर) वर्ष तदानुसार 06 जुलाई, 1935 को पिता छोक्योङ छ़ेरिङ व माता देक्यिद छ़ेरिङ के पुत्र के रूप में तिब्बत के उत्तर पूर्व दोमेद प्रान्त तगछ़ेर नामक गाँव में जन्म लिए। आज आप तिब्बती केलिन्डर के अनुसार अट्ठासी (88) वर्ष, पश्चिमी केलिन्डर के अनुसार सत्तास्सी (87) वर्ष के हो गए हैं। इस जन्म दिवस को विशेष दिन के रूप में मानते हैं। आज के इस मंगल दिन को सभी देशों में अत्यधिक हर्षोल्लास के साथ पुण्य कर्मों को अर्जित से सम्बन्धित है। मैं तिब्बत व तिब्बत से बाहर रहने वाले तिब्बतियों की ओर से आप दीर्घायु हों, समस्त सत्त्वों के नाथ, संरक्षक, अनुशासित पथप्रदर्शक के रूप में महादीपक भाँति विराजमान होकर आपके कृत्य समस्त दुनिया में व्यप्त हों ऐसी हृदय से प्रार्थना करता हूँ।
इस प्रकार पूर्व के दलाई लामा के गुप्त शाक्तियाँ, देवों व लामाओं के भाविष्यवाणी के अनुसार निर्विवाद रूप से सही पुनर्जन्म को खोजा गया, वर्ष 1939 को जन्म स्थान तिब्बत के दोमेद तागछ़ेर से राजधानी ल्हासा में आमन्त्रित किए गए। वर्ष 1940 तिब्बती पञ्चाङ्गानुसार लोह-ड्रैगन पहला माह चौदह तिथि के दिन उन्हें दिव्य महल पोताला में निर्भी पञ्चानन सिंह वाले स्वर्णसिंहासन पर आरूढ़ किये गये, दसों दिशाओ में मंगल पताका लहराया गया। उन्होंने उत्कृष्ट शिक्षादिक्षा प्राप्त कर वर्ष 1959 को गेशे ल्हारम्पा की उपाधि जो कि उच्चतम उपाधि है और बौद्ध दर्शन में डॉक्टर के समकक्ष है, से सम्मानित किया गया।
वर्ष 1949 से क्रूर साम्यवादी चीनी सेनाओं ने तिब्बत के पूर्वी दिशा के ज़मीनों पर कब्ज़ा करना शुरु करते हुये समस्त तिब्बत पर बलात् कब्ज़ा करने कारण तिब्बत में राजनीतिक स्थिति गम्भीर बनी हुई थी, जब तिब्बत के देव व मानुष्यों ने सर्वसम्मत से जिस प्रकार से याचना किया उस समय परम पावन जी मात्र सोलह वर्ष के ही थे तब17 नवम्बर, 1950 के दिन धर्म व राजनीति के नैतिक उत्तरदायित्व ग्रहण किया। उन्होंने तिब्बत व चीन दोनों पड़ौसी मूलकों की शान्ति पूर्वक एक साथ रहे, इसकी प्रयास की गई थी। इसके साथ ही परम पावन ने विशेष रूप से तिब्बती राष्ट्र की राजनीतिक व्यवस्था को बदलने के उद्देश्य से एक सुधार आयोग की स्थापना की। इस कार्यक्रम के तहत, तिब्बती समाज की प्रगति और भलाई के लिए कई सुधार उपाय किए गए, जिसमें अत्यन्त ग़रीब जनताओं के पुराने कर्ज़ पर छूट देना, पुशओं का चारा प्रदान करना आदि शामिल है। इस प्रकार के कल्याणकारी सामाजिक विकास कार्यों के प्रयास में व्यसत थे तो चीन की ओर से नाना प्रकार के विपरीत परिस्थितियाँ पैदा की है, यहीं नहीं रूके असामन्य रूप से बलपूर्वक 17 सूत्री समझौता के कुछ खण्डों को चीन की ओर से ही अमान्य मानते हुए कुचलने आदि के कारण, वर्ष 1959 को आर्य देश भारत में शरण लेनी पड़ी थी।
परम पावन दलाई लामा जी भारत में सफलतापूर्वक पहुँचते ही तिब्बत की पुनः स्वतन्त्रता प्राप्ति हेतु निर्वासित तिब्बती सरकार की कार्य प्राणाली, इस प्रकार कई तिब्बती विद्यालय, तिब्बतियों के पुनर्वास के लिये बस्तीयाँ (स्टेलमेंटस), धार्मिक केन्द्रों की स्थापना इत्यादि बहुत से कार्यक्रम किए गए-का हम कृतज्ञ मानते हैं। इसके अलावा उन्होंने अहिंसक, पारस्परिक रूप से लाभकारी मध्यम मर्ग के माध्यम से तिब्बत और चीन के बीच मैत्रीपूर्ण सह-अस्तित्व का समझौता करने की प्रयास भी किए। परम पावन जी ने विशेष रूप से तिब्बती राजनीतिक व्यवस्था के विकास की पहल की, जिसका स्वरूप पूरी तरह से लोकतान्त्रिक होगी। इसके बाद 1961 में, भविष्य तिब्बत के लोकतान्त्रिक संविधान की रूपरेखा की शुरुआत की गई। बाद में 1963 में, परम पावन ने भविष्य तिब्बत के लोकतान्त्रिक विस्तृत संविधान की सार्वभौमिक घोषणा की। फिर वर्ष 1991 में, उन्होंने निर्वासन में तिब्बती संसद को क़ानून बनाने वाला विधान परिषद में परिवर्तित कर दिया। और यही वह आधार था जिस पर निर्वासन में 11वीं निर्वासित तिब्बती संसद ने तिब्बती चार्टर (संविधान) पारित किया था, जिसे परम पावन चौदहवें दलाई लामा जी ने 28 जून, 1991 को विधिवत स्वीकृति दी थी। इस प्रकार परम पावन जी ने निर्वासित तिब्बती सरकार को बदल दिया। उस समय के निर्वासित तिब्बत सरकार एवं वर्तमान के केन्द्र तिब्बती प्रशासन को पूरी तरह से लोकतान्त्रिक व्यवस्था में क़ानून के शासन द्वारा शासित किया गया। वर्ष 2001 को परम पावन दलाई लामा जी के आदेशानुसार लोकतान्त्रिक चुनाव के माध्यम से कालोन ठ्रिपा चुनने की व्यवस्था प्रारम्भ की गई। यह लोकतन्त्र के विस्तार में एक बहुत बड़ा क़दम है। साथ ही वर्ष 2011 को लगभग 400 वर्षों का ऐतिहासिक वाले दलाई लामा के संस्था तिब्बत सरकार गदेन फोड्राङ ने राजनीतिक व प्रशासनिक के सम्पूर्ण शक्ति को जनता द्वारा चुने गए नेतृत्व करने वालों को हस्तानान्तरण कर दिया गया। परिणामस्वरूप, निर्वासित तिब्बतियों का राजनीतिक और प्रशासनिक ढ़ांचा तब से लोकतान्त्रिक व्यवस्था की उत्कृष्टता के पूर्णरूपेन कार्य कर रहा है। यह केन्द्र तिब्बती प्रशासन पूर्णतः लोकतान्त्रिक पथ पर अग्रसर हैं।
विगत कई दशकों से परम पावना दलाई लामा जी के राजनीति-धार्मिक क्षेत्रों में उत्कृष्ट महान कार्यों के परिणाम सभी दिशाओं में अत्यधिक प्रस्फुटित हो रहे हैं, निश्चित रूप से जगत कल्याण करने वाले एक चेहरे के रूप में उभरें हैं-का दुनिया में साक्षी रहे बहुत से लोग मन्त्रमुग्ध होकर प्रशंसा के फूल बरसा रहे हैं। साथ ही अमरिका व यूरोप दोनों के साथ उत्तर-पूर्वी के कई देशों के सरकार व गैर-सरकारी संस्था ने परम पावन दलाई लामा जी को वर्ष 1989 को नोबेल शान्ति पुरस्कार, वर्ष 2007 को संयुक्त राज्य अमरिका के कांग्रेस स्वर्ण पदक। वर्ष 2012 को यूनाइटेड किंगडम में जॉन टेम्पलटोन पुरस्कार इत्यादि प्रतीक के तौर पर बहुत सारे प्रशंसा पुरस्कार प्रदान किए हैं।
अभी हाल ही में, निर्वासन में तिब्बती संसद द्वारा आयोजित तिब्बत पर 8वाँ विश्व सांसद सम्मेलन, संयुक्त राज्य अमेरिका की राधानी वाशिंगटन, डी.सी. में 22-23 जून, 2022 को आयोजि किया गया था। यूनाइटेड सेट्स कांग्रेस ने कैपिटल हिल पर डर्केसन सीनेट कार्यालय भवन में कार्यक्रम के आयोजन को सुविधाजनक बनाने में सहयोग की। और इसकी अध्यक्षता संयुक्त राज्य कांग्रेस के निचले सदन हॉउस ऑफ़ रिप्रेजेंटेटिव के सीपकर नैन्सी पेलोसी ने की। और एजेंडा पर मुद्दों के कई पहलुओं पर अपनी टिप्पणी में, नैन्सी पेलोसी ने स्पष्ट किया कि कैसे संयुक्त राज्य अमेरिका की सरकार तिब्बत के मुद्दे पर समर्थन देना जारी रखेगी। इसी तरह, इस अवसर पर परम पावन दलाई लामा ने एक ऑनलाइन वीडियो द्वारा उद्घाटन समारोह को सम्बोधित किया। तिब्बत के मुद्दे को उजागर करने और समर्थन की अभिव्यक्तियों में ये टिप्पणियाँ और उत्कृष्ट रूप से प्रशंसनीय होने के साथ-साथ अमूल्य भी हैं। उस समय स्वयं संयुक्त राज्य अमेरिका के अलावा, 28 विभिन्न देशों के संसद सदस्य, तिब्बती ओर अन्य देशों के विद्वानों, दुनिया भर से विभिन्न जातीय समूहों के कार्यकर्ता आदि कुल संख्या 100 से अधिक प्रतिभागी शामिल हुए हैं। संसद के कुछ प्रतिनिधियों द्वारा इन्टरनेट माध्यम से भी भाग लिया है। इस सम्मेलन में भाग लेने वालों ने तिब्बत के मद्दे पर ज़ोरदार समर्थन करने की पक्ष रखा है। इस सम्मेलन में वाशिंग टोन घोषणा, भविष्य वाशिंग टोन कार्रवाई की योजना आदि निर्धारित किया गया। इतना ही नहीं सम्मेलन में अन्तर्राष्ट्रीय सांसद प्रतिनिधि के तिब्बत समन्वय संगठन (INPaT) को पुनः स्थापित किया जा सका है। सभी को यह ज्ञात है कि हमरा कोई भी काम सफल होता है तो, उस सफलता के पीछे परम पावन दलाई लामा जी के प्रतापी, उनकी कृपादृष्टि सभी पर रहते हैं। आज के अन्तर्राष्ट्रीय सांसद प्रतिनिधियों के तिब्बत पर आठवाँ सम्मेलन भी परम पावन जी के वर्षों की अथक प्रयास का फल हैं। तिब्बत व तिब्बतियों के पूरी मन से समर्थन करने वाली प्रसिद्ध अमरिका के निचले सदन के अध्यक्षा और कई सांसद प्रतिनिधियों के समर्थन से यह सम्मेलन ऐतिहासिक बना है और भव्य रूप से आठवाँ सम्मेलन को वाशिंग टोन में आयोजित किया जा सका है, ऐसा मैं मानता हूँ।
तिब्बत में क्रूर चीन सरकार द्वारा तिब्बत की पहचान, पारम्परिक धर्मों, संस्कृति, भाषा आदि को नष्ट करने की लक्ष्य लेकर तिब्बतियों को अपने ही देश में दैनिक दिनचर्या के अन्दर लोगों के मौलिक मानवाधिकार से भी वञ्चित रखा जा रहा है। चीनी सरकार द्वारा तिब्बत में यातनाएं व अत्यधिक उत्पीड़न किया जा रहा है, स्थिति बहुत गम्भीर बनी हुई है। विशेषकर आजकल तिब्बत के लेखक, बुद्धिजीवियों द्वारा अपने लोगों को जातीय पहचान की संरक्षण, मौलिक मानवाधिकार का प्रयोग करने, पारम्परिक धर्मों, संस्कृति, भाषा के प्रचार-प्रसार किया जा रहा है। इस पर चीन सरकार द्वारा देश को विभाजित करने की कोशिश करने के आरोप में सताया जा रहे हैं। ऐसे तिब्बती बुद्धिजीवियों और कार्यकर्ताओ की गिरफ़्तारी, हिरासत और न्यायिक उत्पीड़न का सिलसिला आज भी निरन्तर जारी है। साम्यवादी चीनी सरकार का अत्याचार तिब्बती जनता के लिये किस हद तक असहनीय है, इसका अंदाज़ इसी बात से लगाया जा सकता है कि वर्ष 2009 से आज तक आत्मदाह करने वालों में युवा-वृद्ध, महिलाएं व पुरूष, भिक्षु-भिक्षुणियों की संख्या लगभग 150 से अधिक हैं। शान्ति व न्याय को महत्व देने वाले दुनिया के उन देशों की परिस्थिति, इक्कीसवीं सदी जिसमें हम आज जी रहे हैं, उसमें चीनी नेताओं द्वारा तिब्बती के प्रति दुराग्रहपूर्ण नीति को अपनाया जा रहा है। इस पर अनिवार्य रूप से एक सकारात्मक दिशा में बदलाव लोने का समय है। सभी सम्बन्धित संस्थाओं और व्यक्तियों से इस तथ्य का सहानुभूतिपूर्वक संज्ञान में लेने की अपील करता हूँ।
आज का दिन, तिब्बत में रह रहे हमारे भाईयों-बहनों, दुनिया में जहाँ कहीं भी तिब्बत के लोगों सहित शान्ति प्रिय दुनिया के लोगों के द्वारा हर्षोल्लास के साथ परम पावन जी के जन्म दिन मनाने के साथ उनके विख्यात चार प्रतिबद्धताएं और सदा सार्वभौमिक उत्तरदायित्व के कृत्यों को कृतज्ञता मानते हुए सदाचार व बोधिचित्त युक्त एक तिब्बती बनाने की अभ्यास करने की पुनः प्रबल रूप से प्रतिज्ञा करना, आपके जन्म दिन को मनाने की प्रयोजन का सार बनता है। मैं तदानुसार सभी तिब्बतियों को गम्भीरता के साथ दैनिक दिनचर्चा में अभ्यास करने हेतु आह्वान करता हूँ।
भारत की सरकार और जानताओं ने तिब्बत और तिब्बतियों के लिये हर प्रकार की सहयोग प्रदान किया है। उस ऋण को हम उतार नहीं सकते। इस प्रकार संयुक्त राज्य अमरिका, यूरोप के कई देशों सहित तिब्बत के समर्थक करने वाले अन्तर्राष्ट्रीय सरकारें हैं, नेताओं, संगठन व व्यक्तिगत लोगों इत्यादि सभी को आज के इस शुभ दिन पर मैं समस्त तिब्बतियों की ओर से कृतज्ञता अभिव्यक्त करता हूँ।
अन्त में परम पावन दलाई लामा जी दीर्घायु हों, उनके मनोकामनाएं स्वतः सिद्ध हों, तिब्बत का मुद्दा जल्द-से-जल्द हल हों, हम सब तिब्बत में एकत्रित होकर वो अच्छे दिन का लाभ ले सकें ऐसी प्रार्थना करते हैं।
निर्वासित तिब्बती संसद
६ जुलाई, २०२२
* इस हिन्दी अनुवाद में किसी भी प्रकार के विसंगति के मामले में, सभी प्रयोजन हेतु तिब्बती मूल को आधिकारिक माना जाना चाहिए।