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तिब्बती लोकतन्त्र स्थापना की 62वीं वर्षगांठ के अवसर पर निर्वासित तिब्बती संसद का वक्तव्य

TPiE
3 years ago

आज तिब्बती पञ्चाङ्कानुसार वर्ष 2149  17 रबजुङ, रबनेस् जल-व्याघ्र वर्ष के 7वें मास (डोशिन दावा) शुक्ल पक्ष की षष्ठी के दिन तदानुसार वर्ष 2022, 02 सितम्बर है। परम पावन दलाईलामा जी, तिब्बत के लोगों की अपूरणीय नेता, तिब्बती शासन प्रणाली को लोकतान्त्रिक बनाने के अपने लम्बे समय से वांछित उद्देश्य को लागू करने की प्रक्रिया शुरू की। 02 फरवरी, 1960 को बौद्धों के प्रमुख तीर्थ स्थल बोधगया में जब तीनों प्रान्त और भिन्न धार्मिक सम्प्रदाय के प्रतिनिधियों का सम्मेलन हुई, तब उसमें परम पावन जी के आदेश-विचारों के साथ पूरी क्षमता के साथ निस्सन्देह होकर चलने की प्रतिज्ञा ली गई। उसी समय परम पावन ने पूर्व लम्बित तीनों प्रान्त और भिन्न धार्मिक सम्प्रदाय के अपने अपने प्रतिनिधियों को बनाये जाने की आदेशानुसार सर्वप्रथम निर्वासन में तिब्बती सांसदों को परम पावन जी की ओर हस्ताक्षरित स्थापित किये गये। और 02 सितम्बर, 1960 को कार्य की उत्तरादायित्व का शपथ लेने के बाद से तिब्बती लोकतन्त्र पर्व को मानते हुए अब तक 62 वर्ष पूरे हो गये। तो आज के दिन हम सभी तिब्बतियों के लिये एक विशेष दिन बन जाता है।

निर्वासन में शरणार्थियों के रूप में रहने वाले लोगों के सभी समुदायों में, तिब्बती समुदाय एक लोकतान्त्रिक व्यवस्था के तहत चलने वाले समुदाय के रूप में खड़ा है। हम लोकतन्त्र को उपभोग करते हुये हम अपने राष्ट्र के लिए संघर्ष, अपने पारम्परिक धार्मिक, सांस्कृतिक और भाषाई विरासत आदि की संरक्षण करने वाले विशेष समाज के तौर पर पहचान है। इस प्रकार केन्द्रीय तिब्बती प्रशासन की शासन प्रणाली वह है जो अपने कामकाज के सभी पहलुओं में पूरी तरह से लोकतान्त्रिक है। इस दुनिया में आज किसी भी अन्य वास्तविक लोकतान्त्रिक व्यवस्था के साथ बराबरी में खड़ा हो सके ऐसी विशेषताएं हैं। परम पावन दलाई लामा द्वारा निर्धारित दीर्घकालिक दृष्टि और समय-समय पर उपदेश व मार्गदर्शन दिये जाने के कारण यह चमत्कारिक उपलब्धि पाई है। यह वास्तव में तिब्बती लोगों के लिये खुशी और गर्व का विषय है। और उनके कृतज्ञता के अपार ऋणों को चुकाना असंभव है, हम तिब्बत के समस्त लोगों की ओर से परम पावन दलाई जी के प्रति मन की गहराई से कृतज्ञता ज्ञापित करते हैं।

पिछले छह दशकों से अधिक समय में, निर्वासित तिब्बती लोगों की लोकतान्त्रिक व्यवस्था के ढांचे में समय के अनुसार विकासक्रम में अत्यधिक बदलाव के रूप में स्पष्ट दिखता है। 2 सितम्बर, 1960 के दिन, सर्वप्रथम तिब्बती लोगों की लोकतान्त्रिक शासन प्रणाली की स्थापना हुई। उसी के साथ निर्वासन में पहला तिब्बती संसद के सदस्यों ने पद की शपथ ली। उस समय, परम पावन दलाई लामा जी ने तिब्बती लोगों के वर्तमान और भविष्य के दीर्घकालिक कल्याण की उद्देश्यों के साथ, अमूल्य मार्गदर्शन प्रदान किया, जिससे उन्होंने यह स्पष्ट किया कि तिब्बती सरकार का राजनीतिक चरित्र निर्वासन में अहिंसा की विचारधारा पर आधारित होना चाहिये। और यही वह आधार था जिस पर स्वतन्त्रता, न्याय और समानता के विचारों से परिभाषित होकर हमारा महान लोकतान्त्रिक मार्ग उभरा है। फिर 1961 में, भविष्य में, मुक्त तिब्बत के लिये एक संविधान की मुख्य विशेषताओं को रेखांकित करने वाला एक दस्तावेज़ लाया गया। इसके बाद 1963 में केन्द्रीय तिब्बती प्रशासन ने तिब्बत के संविधान की घोषणा की गई। बाद में, 21 नवम्बर, 1974 को निर्वासन में तिब्बती संसद के सदस्यों के चुनाव के नियमों को अपनाया गया और कार्यान्वयन के लिये घोषित किया गया। और, 1991 में, परम पावन दलाई लामा जी ने निर्वासन में तिब्बती संसद को तिब्बती लोकतान्त्रिक व्यवस्था की विधायी शाखा बनने हेतु एक पूर्ण क़ानून बनाने वाली संस्था में बदलकर केन्द्रीय तिब्बती प्रशासन को लोकतान्त्रिक बनाने की दिशा में एक और बड़ा कदम उठाया। इस उपाय के अनुसरण में, परम पावन जी ने 28 जून, 1991 को निर्वासन में तिब्बतियों के चार्टर को निर्वासन में तिब्बती संसद द्वारा विधिवत अंगीकार किये जाने के बाद अपनी स्वीकृति दी। इस प्रकार उन्होंने यह सुनिश्चित किया कि तिब्बती लोकतन्त्र एक लिखित संविधान की नींव पर आधारित पूरी तरह से आधुनिक प्रणाली बन जाये। एक और प्रमुख पड़ाव में, केन्द्रीय तिब्बती प्रशासन के कार्यकारी प्रमुख कालोन ठ्रिपा को वर्ष 2001 से तिब्बती लोगों द्वारा सीधे चुना जाना शुरू हुआ। इसके बाद, वर्ष 2011 में 25वें संशोधन को अपनाया गया। निर्वासन में तिब्बतियों के चार्टर, जिसके तहत परम पावन दलाई लामा जी ने तिब्बती लोगों द्वारा चुने गये नेतृत्व के पक्ष में अपनी सभी राजनीतिक और प्रशासनिक शक्तियों को हस्तान्तरित कर दिया। तब से, तिब्बती जनताओं द्वारा चुने गये नेताओं द्वारा उत्तरदायित्व लेते हुये केन्द्रीय तिब्बती प्रशासन ने लोकतान्त्रिक तरीके से कार्य को आगे बढ़ने में अग्रसर हैं।

यह लोकतान्त्रिक व्यवस्था तो मानवता के ऐतिहासिक घटाक्रमों में वह शक्तिशाली है या कमज़ोर, या अमीर या ग़रीब, चाहे वह व्यक्ति पुरुष हो या महिला, या उसके वंश व रंगभेद के आधार पर व्यक्तिक सामाज में महान-निम्न के भेदभाव करना बन्द करने से जो समाज को समग्रता में या सामान्य रूप से देखती है, जिसमें सभी को समान रूप से देखा जाता है, जिसमें प्राथमिक ध्यान आम जनता की इच्छा के आधार पर कार्य करने पर ज़ोर दिया जाता है। इस तरह की एक महान प्रणाली के संस्थागतकरण को साकार करने के उद्देश्य से, दुनिया भर के देशों ने भारी क्लेश झेले हैं ऐतिहासिक घटनाक्रमों में युद्ध, विद्रोह और संघर्ष शामिल हैं। इस तरह की उथल-पुथल में जीत या हार से नतीजे तय होते हैं। इस तरह के विभिन्न माध्यमों से लोकप्रिय इच्छा शक्ति के दावे से लोकतान्त्रिक प्रणाली की प्राप्ति हेतु आज भी एक सतत प्रवृत्ति है। लेकिन हमारे लोकतन्त्र के विकास में ऐसा नहीं था। इसके बजाय, यह बिना किसी अशान्ति के घटित हुआ, क्योंकि यह हमें परम पावन दलाई लामा जी द्वारा खुशी के साथ और तिब्बती लोगों के प्रति उनके महान स्नेह के कारण उपहार में दिया गया। जो कि निर्वासन में तिब्बती लोगों की लोकतान्त्रिक व्यवस्था के विकास के बढ़ते हुये क्रम में यह सब बहुत स्पष्ट है।

आज इस दुनिया के कुछ 195 स्वतन्त्र देशों की सूची में से लगभग 167 हैं लोकतान्त्रिक राष्ट्र के प्रारूप में होने पर भी इसमें लोकतन्त्र प्रारूप पूरी तरह से सिद्ध होने व न होने वाले नाना प्रकार के सम्मलित है। इसके अलावा जनताओं के लोकतान्त्रिक समाज में भिन्न विचार व सिद्धान्त को किस प्रकार से ला सकते हैं कि नहीं, नेतृत्व द्वारा उत्तरदायित्व के तौर तरीक़ों पर निर्भर करता है। इस प्रकार लोकतान्त्रिक समाज में भिन्न विचार व सिद्धान्त के हो सकते हैं परन्तु हमारे स्वतन्त्रता संघर्ष के लिये बने इस प्रशासन को प्रभावशीलता सुनिश्चित करने हेतु तिब्बतियों के एकता में पतन न हो, इसलिये निर्वासन तिब्बतियों के लिये यह लोकतन्त्र जान के सामान अत्यधिक महत्व बन जाता है।

इस प्रकार केन्द्रीय तिब्बती प्रशासन की लोकतान्त्रिक व्यवस्था पर रुचि रखने वाले कई राष्ट्र के सरकारों व जनताओं, सरकारी व गैर-सरकारी निकायों, उनके प्रमुख नेताओं, साथ ही कुछ निजी व्यक्तों के द्वारा प्रशंसा के पात्र बन गई है। इसके अलावा, ये विभिन्न संस्थाएं द्वारा निरान्तर हर संभव तिब्बत के मुद्दे को मजबूत के साथ समर्थन देती रही हैं, अपने अपने राष्ट्र के संसद में तिब्बत के मद्दे पर अधिनियम, बैठकों में काफ़ी प्रस्ताव रखा जा सका है। उदारहरणस्वरूप वर्ष 2018 को संयुक्त राज्य कांग्रेस ने तिब्बत में आने-जाने पर समान रूप से पारस्परिक अधिनियम बनाया गया। वर्ष 2020 को तिब्बत नीति व समर्थन अधिनियम, इस प्रकार, इस वर्ष 13 जुलाई के दिन संयुक्त राज्य कांग्रेस ने निचली संसद के सांसद श्री जिम मैक्गोवन (Jim McGovern) जी व श्री मयिकेल मेकखोल (Michael McCaul) जी दोनों ने अमेरिकी निचली संसद में एक नये “तिब्बत-चीन संघर्ष अधिनियम के लिये एक प्रस्ताव” विधेयक पेश किया गया। हाल ही में, 3 अगस्त के दिन भारत के संसद में सर्वदलीय भारतीय संसदीय मञ्च के सदस्यों ने तिब्बत हेतु तिब्बत से सम्बन्धित कई मुद्दों पर विचार-विमर्श किया गया, बहुत अच्छी चर्चा हुई है।

इसी तरह, इस वर्ष 22 से 23 तक दो दिवसीय तिब्बत के मद्दे पर आठवाँ अन्तर्राष्ट्रीय सांसदों  के सम्मेलन संयुक्त राज्य अमेरिका की राजधानी वाशिंगटन, डी सी में आयोजित किया गया। इसका उद्घाटन संयुक्त राज्य हॉउस ऑफ़ रिप्रेजेंटेटिव स्पीकर नैन्सी पेलोसी की उपस्थिति में हुईं, उन्होंने सभा को संबोधित की। इस बार सम्मेलन में अमेरिका के अलावा 28 विभिन्न देशों की संसद सदस्य प्रत्यक्ष रूप से उपस्थित हुये। जो लोग उपस्थित नहीं हो सके, उन्होंने ऑनलाइन के माध्यम से भाग ली। इसी के साथ, कैपिटल हिल में चीन पर संयुक्त राज्य कांग्रेस के कार्यकारी आयोग द्वारा आयोजित “तिब्बत : एक अनसुलझे संघर्ष को सुलझाने में बाधाएं” विषय के तहत तिब्बत की ऐतिहासिक स्थिति पर सुनवाई, ऐतिहासिक विशेषज्ञता वाले विद्वानों ने साक्ष्य प्रस्तुत किये जिसके द्वारा यह साबित हो गया था कि तिब्बत देश ऐतिहासिक रूप से कभी चीन का हिस्सा नहीं था। इसी तरह, सम्मेल में अन्तर्राष्ट्रीय सांसदों के तिब्बत समन्वय समिति (आईएनपीएटी) का पुनरुद्धार, “वाशिंगटन घोषणा” और “वाशिंगटन कार्य योजना” को सर्वसम्मति से स्थापित किया गया। इसमें कोई शक नहीं कि इन कार्रवाइयों द्वारा चीन की सरकार को एक स्पष्ट सन्देश गया है। और इससे यह सपष्ट हो जाता है कि तिब्बत का मुद्दा निस्सन्देह अन्तर्राष्ट्रीय मुद्दा बन गया है, यह अब केवल चीन का आन्तरिक मामला नहीं रह जाता है।

हम निर्वासन में रह रहे तिब्बती लोग परम पावन दलाई लामा जी के नेतृत्व और मार्गदर्शन में स्वतन्त्रता और लोकतन्त्र का आनन्द लेने के लिये भाग्यशाली रहे हैं। फिर भी, हम इस तथ्य पर गहन ध्यान देते हैं कि तिब्बत में रहने वाले हमारे साथी-तिब्बती लोगों के लिये, चीन की कम्युनिस्ट पार्टी के शासन के तहत जीवन अभी भी बुनियादी मानवाधिकारों और स्वतन्त्रता का निरन्तर अभाव, और लोकतन्त्र विहिन है। इसके फलस्वरूप मनमानी गिरफ़्तारी, हिरासत, उत्पीड़न और कारावास की सज़ा दी जाती है। हिंसक-दमन-याचना आदि के अधीन बने हुये है। और यह आज चीन की सरकार द्वारा कोविद -19 महामारी को खत्म करने के लिये “शून्य कोविड” नीति को लागू करने के नाम पर किये जा रहे नए कार्रवाई है, जो पहली बार 2019 के अन्त में मध्य चीनी शहर वुहान से शुरू हुआ था। इस नीति के कार्यान्वयन के नाम पर, तिब्बती लोगों को उनकी आवाजाही की स्वतन्त्रता, उनके दैनिक भोजन और अन्य आवश्यक आपूर्ति सुनिश्चित करने की उनकी क्षमता आदि के मामले में भारी कठिनाई का सामना करना पड़ रहा है। लेकिन मूल रूप से, तिब्बत में कोविड-19 महामारी के प्रसार के खिलाफ़ कोई वास्तविक रूप से रोकथाम और सुरक्षा नहीं की गई। बल्कि, मानो जानबूझ कर महामारी की बीमारी के प्रसार का कारण बनने के लिये, चीनी सरकार तिब्बती लोगों को राजनीतिक प्रचार, चीनी शिक्षा के प्रचार-प्रसार के उद्देश्य से सार्वजनिक सभाओं में भाग लेने के लिये मजबूर कर रही है। इस प्रकार, चीन की सरकार तिब्बती लोगों के जीवन के लिये कोई चिन्ता दिखाये बिना अपने अवसरों और शक्तियों का दुरुपयोग कर रही है, जो निश्चित रूप से एक पूरी तरह से ग़लत कार्य है।

इसके अलावा, चीन की सरकार ने जबरदस्ती के आदेश जारी किये हैं जिसके द्वारा उसने तिब्बतियों को चीन के जनवादी गणराज्य के बाहर के लोगों के साथ किसी भी प्रकार के सम्पर्क करने पर प्रतिबन्ध लगा रखा है। इसके अलावा, इस सवाल के बावजूद कि यह वास्तव में कानून को लागू कर रहा था या नहीं, अभी भी मौजूद है जिसे “क्षेत्रीय राष्ट्रीय स्वायत्तता पर चीन के जनवादी गणराज्य का कानून” लिखित रूप में साफ साफ है। फिर भी, चीन की सरकार वर्षों से धीरे-धीरे इस कानून को कमज़ोर कर रही है, जिसके परिणामस्वरूप आज इसका उद्देश्य इन कानूनी प्रावधानों की प्रासंगिकता को मिटाना है। वास्तव में, इसकी नीति अब इस दावे के साथ कि चीनी राष्ट्र सभी जातीय समूहों का एक समुदाय है, एक सामान्य राष्ट्रीय पहचान विकसित करने के उद्देश्य से चीन के जनवादी गणराज्य में विभिन्न जातीय समूहों को अपनाने की अभियान पर बल दिया जा रहा है। इसके तहत, चीन आम राष्ट्रीय भाषा को बढ़ावा देने के लिये अभियान चला रहा है और देश में मौजूद सभी धर्मों को सिनिसाइज़ बनाने के लिए अपनी नीति का व्यापक कार्यान्वयन कर रहा है, जिसके लिये वह लगातार अवसरों पर आदेश और निर्देश जारी करता रहा है। विशेष रूप से जातीय अल्पसंख्यकों के लिये एक नई नीति लागू की जा रही है ताकि यह धारणा बनाई जा सके कि चीन अब एक जातीय रूप से समरूप देश है। इस तरह के कदमों के साथ, चीन की सरकार ने, संक्षेप में, तिब्बती लोगों की बहुत ही जातीय और सांस्कृतिक पहचान को मिटाने के लिये एक अमानवीय नीति को लागू करने की शुरुआत की है। तिब्बत में चीनी कब्जे के शासन को सहन करने वाले भ्रातृ तिब्बतियों ने शान्तिपूर्ण विरोधों की अन्तहीन श्रृंखला को अंजाम देकर इन नीतियों को पूरी तरह से खारिज कर दिया है, जो आज भी जारी है। और हम निर्वासन में रह रहे तिब्बती लोगों को यह कभी नहीं भूलना चाहिये कि तिब्बत के मुद्दे को प्रचारित करना और अन्तर्राष्ट्रीय समुदाय से इसके लिए समर्थन हासिल करने का प्रयास करना हमारा प्राथमिक कर्तव्य है।

निर्वासित तिब्बत संसद समय-समय पर दुनिया भर के देशों में संसद सदस्यों के साथ निरन्तर सम्बन्ध स्थापित कर रही है और निर्वासन में तिब्बती समुदाय में लोकतान्त्रिक प्रक्रियाओं के मानको को बनाये रखने के तिब्बती समुदाय के उन बस्तियों( सेटलमेंट) के स्थानीय प्रतिनिधियों का कार्यक्रम निर्बाध व स्थिर हो सके। इसके लिये स्थानीय प्रतिनिधि, बन्दोबस्द अधिकारी, क्षेत्रीय तिब्बती स्वतन्त्रता आन्दोलन समिति के सदस्यों को स्थानीय समिति के बैठक की प्रक्रिया व कार्य करने की विधि पर प्रशिक्षण कार्यशाला प्रदान करने की कार्यक्रम है। जो कि इस वर्ष, ओडिशा राज्य में (फुनछ़ोग लिंङ तिब्बती बस्ती), मैनपाट में (फेनदे लिंङ तिब्बती बस्ती) और बंदरा (नोरज्ञे लिंङ तिब्बती बस्ती) आदि में इन सभी बस्तियों में जुलाई माह में ओडिशा तिब्बती बस्ती में प्रशिक्षण कार्यशाला का आयोजन किया गया। इस तरह, जंङथांङ क्षेत्र सहित लद्दाख में स्थानीय प्रतिनिधि, क्षेत्रीय तिब्बती स्वतन्त्रता आन्दोलन समिति के सदस्यों के लिये प्रशिक्षण कार्यशाला अगस्त के महीने में लद्दाख सोनम लिंङ तिब्बती बस्ती में आयोजित किया गया। निकट भविष्य में, अक्टूबर के महीने में कालिम्पोंग, दार्जिलिंङ, गंगतोग, सोनादा और रवङला आदि में स्थानीय प्रतिनिधि, क्षेत्रीय तिब्बती स्वतन्त्रता आन्दोलन समिति के सदस्यों के लिये प्रशिक्षण कार्यशाला तिब्बती बस्ती गंगतोग में आयोजित करने की योजना है। इस बीच यह निर्णय लिया गया है कि इस सितम्बर में तिब्बती संसद सत्र के समापन के बाद, दिल्ली शहर में पाँच दिवसीय रणनीति बैठक आयोजन करने की निर्णय लिया गया, जिसमें सांसदों को शामिल होना है। इसी तरह, निर्वासन में वर्तमान तिब्बती संसद के सदस्यों को अपने कार्यकाल के पहले ढाई वर्षों के लिये बाँटे गये अपने अपने बस्तियों में जाकर जानता-मिलन कार्यक्रम पहले से चली रही है। और यह महत्वपूर्ण है कि सभी बस्तियों के जनाता द्वारा गहरी रुचि लेकर बैठकों में सक्रिया रूप से भाग लें। इसके अलावा, निर्वासित तिब्बती संसद के सदस्यों को  यूरोप के देशों में तिब्बत मुद्दे के अपील हेतु कुछ कार्यक्रमों को अन्तिम रूप दिया जा चुका है।

पिछले छह दशकों से अधिक समय से, हम तिब्बतियों के निर्वासन की परिस्थिति, राजनीतिक, धर्म, संस्कृति एवं भाषा संरक्षण, तिब्बती मुक्ति साधना आदि में हमेशा से समर्थन व मार्गदर्शन के साथ सहायता प्रदान करने वाले दुनिया के सभी देशों के सरकार व जनताओं तथा विशेषरूप से भारत सरकार और जनताओं को इस अवसर के माध्यम से कोटी कोटी आभार व्यक्त करते हैं।

अन्त में, परम पावन दलाई लामा जी, तीनों लोक के प्राणियों और विशेषकर तिब्बत के हिमभूमि के परम नाथ दीर्घायु हों, उनके हर मनोकामना निविघ्नपूर्वक पूर्ण हों और तिब्बत के लोकतन्त्र मार्ग सुदृढ़ बनने के साथ विकास करें, तिब्बत समस्या का समादान यथाशीघ्र हों, इन्हीं कामनाओं के साथ।

निर्वासित तिब्बती संसद
02 सितम्बर, 2022

 

 

* इस हिन्दी अनुवाद में किसी भी प्रकार के विसंगति के मामले में, सभी प्रयोजन हेतु तिब्बती मूल को आधिकारिक और अन्तिम माना जाना चाहिये।

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